समाचार पत्र ~ समाज का दर्पण या अभिशाप !आज के समाज की राष्ट्र पटल पर बड़ी ही सोचनीय व दयानीय स्थिति उबर रही है जिसमें अहम भूमिका अपने यहां प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों की है।hindi essay on social issues,HIndi essay on news papers.
आज के समाज की राष्ट्र पटल पर बड़ी ही सोचनीय व दयानीय स्थिति उबर रही है जिसमें अहम भूमिका अपने यहां प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों की है।
समाचार पत्र समाज का दर्पण कहें तो अतिशयोक्ति
नहीं होगी। साहित्य व पत्रकारिता एक दूसरे के पूरक हैं, अर्थात एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। पत्रकारिता केवल क्षणिक
होती है जबकि साहित्य अमर गद्य-विधा है जबकि दोनों का मुख्य लक्ष्य जन-कल्याण को
सर्वोपरी बनाना है।
साहित्य चिंतन साधना पर आधारित जबकि पत्रकारिता तो सामायिकता
की साधना है, पत्रकारिता के मुख्य
सिद्धांत बिंदु हैं जैसे:- सत्य का प्रतिपादन करना, अन्याय का विरोध, राष्ट्र प्रेम, धर्म निरिपेक्षता, जन कल्याण इसी प्रकार हर मनुष्य के भी
कुछ सिद्धांत व नियम होते है जिन पर चल कर वह अपना व अपने परिवार का उत्तम चरित्र
का निर्माण करता है परंतु आज के समाचार पत्रों का काफी हद तक चरित्र हनन हो
चुका है,, कुछ समाचार पत्र तो हमारी देश की भोली-भाली जनता की भावनाओं
से चंद नोटों के टुकड़ों की खातिर फूटबाल की मांनिद खेलते हैं, इसका जीता जागता
उदाहरण आप गत दिनों कुछ अखबारों में प्रकाशित 251 रुपये के मोबाईल से लगा सकते हैं।
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अरे मलीन बुद्धि धारण कर्ता समाचार पत्रों
के संपादकों तुम्हें परमेश्वर ने कुछ बुद्धि तो दी होगी जरा सोचो 251 रुपये में तो एक मोबाईल की डाटा संग्रह यंत्र (मैमोरी)
नहीं खरीदी जा सकती है चंद नोटों की खातिर जनता की भावनाओं से खेलना तुम्हें शौभा
नहीं देता।
कुछ समाचार पत्रों की छवि तो इतनी मलीन हो चुकी है कि उन्हें सामूहिक
परिवार के साथ बैठ कर पढ़ा ही नहीं जा सकता क्योंकि उसमें अश्लील विज्ञापनों की
भरमार होती है, कुछ समाचार पत्रों में एक
विज्ञापन आये दिन प्रकाशित होता है चेहरा पहचानों, जिस विज्ञापन की वजह से हमारे समाज के लोगों ने क्षणिक लालच के लिए न जाने
कितनी रकम लुटा दी होगी।
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यही हाल हमारे कुछ दृश्य चैनलों का भी है। हमारे विचार से
कहीं न कहीं कुछ समाचार पत्र व दृश्य चैनल हमारें समाज के व्यक्तियों के विचारों
को मलीन करने में अहम भूमिका बखूबी से निभाते हैं। दूसरी ओर यदि बात करें पत्रकार
की तो हमारे कुछ पत्रकार महोदय तो इतने निर्लज्ज व इतने ढीठ हैं कि वो अपने मनोरथ
को सिद्ध करने के लिए किसी भी हद को पार कर सकते हैं यदि उन से कोई प्रेम से बात
करें तो कहते हैं कि हम समाचार पत्र से हैं, अरे भाई समाचार पत्र से हो तो आप खुदा तो नहीं, अमुख पत्रकार महोदय की बुद्धि
की स्थिति तो इतनी गिर गई है, उदहारण के तौर
पर यदि हम बात करें किसी राह पर परमेश्वर न करें किसी के साथ दुर्घटना
घटित हो जाये, ओर पत्रकार महोदय वहां से
गुजर रहेंं हो जो व्यक्ति घायल व्यक्ति को बचा रहा है तो उसका साक्षात्कार लेने की
बजाय वह मानवता को ताक पर रखकर किसी धनाढ्य की चापलूसी करने को ज्यादा महत्व देना
पंसद करेगा क्योंकि चापलूसी करने में उनका स्वार्थ सिद्ध होता है। ये ही हाल हमारे
समाज में प्रसारित कुछ समाचार पत्रों का भी है। हमारे अनुमान से यदि घायल व्यक्ति
को बचाने वाले का साक्षत्कार लिया जाये, प्रकाशित किया जाये तो काफी लोग पथ पर घायल की मद्द को आगे आयेंगे।
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"पत्रकारिता वह धर्म है जिसका संबंध पत्रकार के उस कर्म से
है जिससे व तत्कालिक घटनाओं व समस्याओं का सबसे अधिक सही निष्पक्ष विवरण पाठकों के
समक्ष प्रस्तुत कर, और जनमत को
जाग्रत करने का श्रम भी करें।"~ डा. भंवर सुराणा
समाचार पत्रों के माध्यम से देश के अनेक
महापुरूषों, लाला लाजपतराय, राजाराम मोहन
राय आदि ने भारत में फैली अनेक कुरितियों व भारत को स्वत्रंता प्राप्ति के मुख्य
लक्ष्य पर पहुंचाने के लिए अहम भूमिका निभाई, ब्रिटिश सरकार को समाचार पत्रों के माध्यम से अंग्रेजों को भारत छोडऩे पर
मजबूर कर दिया था परंतु आज तो तुलिका (कलम) की धारा तो विपरित दिशा में प्रवाहित
हो रही है। कुछ लोग तो अपने काले धंधे को बचाने के लिए
समाचार पत्रों का सहारा ले रहे हैं, हमारे लोकतंत्र के चार स्तम्भ हैं जिसमे से
हमारे अनुमान से 3 स्तम्भ काफी
कमजोर पड़ रहे हैं। जिससेें हमारे देश में अनेक समस्याएं मुंह बाये खड़ी हैं, जिसमें देश का चौथा स्तम्भ कहे जाने वाला समाचार पत्र व
दृश्य चैनल भी शामिल हैं
अत: देश का चौथा स्तम्भ होने के नाते हमारी ये जिम्मेवारी
बनती है कि हम मानव धर्म के हित में होने वाले कार्य व समाज हित कार्य को
मुख्य रूप से उठायें व किसी दु:खी प्राणी की मद्द करने वाले लोगों के कार्यो को
अच्छी तरह से प्रकाशित करें ताकि इस मुहिम को बढ़ाने के लिए लोग ओर आगे आयें। ताकि
हमारे देश में खुशहाली का महौल चहुं ओर अग्रसर हो सके।
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हमारे समाचार पत्रों में इतनी
ताकत है कि किसी महापुरूष की पंक्तियों द्वारा व्यक्त करना चाहेंगे। "झुक जाते हैं उनके सम्मुख उंचे
गर्वित सिंहासन बांध न पाया उन्हें, आज तक कभी किसी का अविशासन"
अच्छा मित्र वहीं होता है जो आपके
समक्ष आप की बुराइयों को प्रस्तुत करे, ताकि हामरे देश के समक्ष आने वाली समस्त समस्याओं का निवारण किया जा सके। आप
सभी के इस कृत्य से हमारे हृदय में काफी असहनीय पीड़ा होती है कि समाचार पत्र अपने
पथ से भ्रमित हो गये हैं।
अत: किसी न किसी कि जिम्मेवारी बनती है कि भूले हुये को यदि
पथ दिखा दिया जाये तो काफी कुछ अच्छा होने के संभावनाए बन जाती हैं अर्थात समाज को
निर्मल व सरल बनाने की एक आशा की किरण नजर आने लगती है जो हमारे देश व समाज के लिए
काफी कारगर साबित हो सकती है।
लेखक परिचय
अंकेश धीमान, पुत्र: श्री जयभगवान
बुढ़ाना, मुजफ्फरगनर उत्तर प्रदेश
Email Id-licankdhiman@yahoo.com
licankdhiman@rediffmail.com
Facebook A/c-Ankesh Dhiman
आपके आर्टिकल का विषय बहुत सही हैं, समाचार पत्र से हमें घर बैठे ही पूरी दुनिया की सारी जानकारी मिल जाती हैं. लेकिन दुनिया में अलग अलग तरह के लोग हैं वैसे ही उनकी सोच भी अलग अलग हैं इसलिए हर इन्सान समाचार पत्र को समाज का दर्पण या अभिशाप ये उसकी सोच पर निर्भर हैं.
जवाब देंहटाएंपहले के ज़माने ने पूरी दुनिया की जानकारी हासिल करने के लिये समाचार पत्र ही एक जरिया था, तब लोग उसको पढ़कर जानकारी हासिल कर लेते थे लेकिन धीरे धीरे लोगों ने और भी रास्ते निकालिए जानकारी पाने के जैसे टेलीविजन, इंटरनेट.
जवाब देंहटाएंइसलिए अब धीरे धीरे समाचार पत्र की मांग कम होते नजर आ रही हैं.
सही लिखा आपने पत्रकारों को समाज हित को देखकर सयमित भाषा में कलम चलानी चाहिए , ,समाचार पत्र में मातृ शक्ति के ,महिला फिल्म अभिनेत्रीओ के चित्र , जापानी तेल ,इत्यादि जैसे विज्ञापन को बेन तो करना ही चाहिए ,साथ ही अपराध सवांददाता समाज में हो रहे दहेज़ ,छेड़छाड़ , दुष्कर्म की खबरों को सनसनी नहीं बनाकर ,उसकी तह में जाकर खबर को मौलिक बनाये तब जाकर समाज में अखबारों की प्रतिष्ठा कायम रहेगी ...
जवाब देंहटाएंजय मातृ शक्ति जय भारत
i) समाचार-पत्र : समाज का दर्पण
जवाब देंहटाएंसं केत बिं दु:-
● आधनिुनिक जीवन का अं ग