religion union essay in hindi,essay on religion in hindi,value of religion,मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना !!
आधुनिक युग में आज भी हमारे देश
को धर्म के क्षेत्र में समस्त विश्व का गुरू माना जाता है। धर्म की यदि हम बात करें तो धर्म को परिभाषित करना अनिवार्य हो जाता है। धर्म संस्कृत भाषा के धृ धातु से
बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है धारण करने वाली अर्थात धार्यते इति धर्म: अर्थात जो
धारण किया जाये वह धर्म है। धर्म के प्रति, ऐसी आस्था है जो कि अदृश्य शक्ति में आस्था व विश्वास का नाम है जो लौकिक व
परलौकिक शांति व उन्नति के लिए की जाती है।
मनु स्मृति के अनुसार धर्म के लक्षण मुख्य:
धृति: क्षमा दमोअस्तेयं शोच
इन्द्रिय निग्रह:
धीर्विद्या सत्यमक्रोधी दशकं
धर्म लक्षण
अर्थात धैर्य, क्षमा, मन को
प्राकृतिक प्रलोभनों में फंसने से रोकना, चोरी त्याग, शौच, इंद्रिय निग्रह, बुद्धि अथवा ज्ञान, विद्या, सत्य और अक्रोध धर्म के दस लक्षण हैं।
हमारे देश में सभी धर्मो को समान महत्व दिया
जाता है, पर आधुनिक समय में कुछ स्थिति विचार करने योग्य व बिना किसी भेद भाव के
समाप्त करने वाली है। आज के भौतिकवादी युग में मनुष्य इतना विलीन हो चुका है कि उसे
अच्छे बुरे का कोई फर्क नजर आने के साथ वह किसी भी व्यक्ति की भावनाओं से खेलने से
भी नहीं चूकता क्योंकि वह अपने ही धर्म को सर्वोपरी मानता है। परंतु तुच्छ प्राणी
वह नहीं समझता कि सभी धर्म हमें इंसानियत या मानव धर्म का पाठ पढ़ाते हैं। वह
परमेश्वर तो एक है जिस प्रकार पानी के पर्यावाची नीर, जल, उदक आदि अनेक
नाम हो सकते हैं वैसे ही उस परेमश्वर के अनेक नाम जैसे वाहेगुरू, अल्लाह, गॉड, खुदा, रब, ईश्वर के नाम से जाना जाता है जिस प्रकार पानी का नाम बदलने
से उसका रंग, स्वाद, गुण, नहीं बदलते
उसी प्रकार उस परमेश्वर का नाम बदलने से उस पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता। हम यदि
किसी भी धर्म के व्यक्ति को लें और उसकी तुलना में अन्य किसी धर्म के व्यक्ति
विशेष से तुलना करें तो सभी समानताएं एक समान मिलेगी, फिर हम आपस में किसी धर्म या किसी विशेष संप्रादय से भेद
भाव क्यों करते है? हमें किसी भी
धर्म के व्यक्ति की भावनाओं को आहत करने का कोई अधिकार नहीं। क्योंकि सबसे पहले हम
इंसान या मानव है और हमारा धर्म भी इंसानियत या मानव धर्म है।
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जब हम एक मालिक की औलाद हैं, तो आपस में आये दिन हम झगड़ते किस लिए हैं?
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गुरूवाणी में लिखा है
एक नूर से सब जग उपजा
कौन भले, कौन मंदे
अव्वल अल्लाह नूर उपाया
मालिक के सब बंदे।
ना हिंदू बुरा है, ना मुसलमां बुरा है
जो बुराई पर उतर आये, वो इंसान बुरा है
~संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां
उदाहरण के तौर पर यदि किसी पिता
के चार पुत्र हैं, और पिता को पता चले कि चारों पुत्र आपस में किसी भी बात की वजह
से बड़ी ही बेरहमी से लड़ रहे हैं तो सोचो, पिता के अन्त: हृदय पर क्या गुजरती होगी?
उसी प्रकार जब हम आपस मेें
दंगा-फसाद करते है तो सोचो वह परमेश्वर अपने अन्त: हृदय में क्या सोचते होंगे।
जबकि हम सब उसकी औलाद है।
गीता में लिखा है
हमें पैदा दूसरे करते हैं
हम जीते दूसरे के लिए हैं
हम कमाते दूसरों के लिए हैं
हम जब मरते है, दूसरो के कंधों पर शमशान या कब्रिस्तान जाते हैं
फिर अंहकार क्यों-?, क्यों आपस में झगडऩा?
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कुछ राजनीतिक पार्टियां मौके का
फायदा उठा कर अपनी रोटियां सेकने से नहीं चूकती क्योंकि उन्होंने इस मौके का तो
बड़ी ही बेसब्री से इंतजार रहता है ताकि उनका वोट बैंक मजबूत हो सके। फिर हम सभी
धर्मों के लोग जब आपस में भाई-भाई हैं तो दूसरों के हाथों में अपनी गलती क्यों दें? जिससे वो
हमारा नाजायज फायदा उठाएं।
यदि हम इस मृत्यु लोक में जन्म लेने के पश्चात किसी दुखी
प्राणी के दुख दर्द में शामिल न हों और उसको दूर करने की कोशिश न करें तो हमारा
जीवन पशु से भी बदत्तर है। अमुख कार्य को करना ही सच्ची मानवता या इंसानियत है।
परंतु बड़े-बड़े शहरों में तो कुछ और ही देखने को मिलता है। उदाहरण के तौर पर यदि
ईश्वर न करें कि फ्लैट में पड़ौसी के यहां कुछ अनहोनी हो जाये तो वो महाश्य पड़ौसी
से उसका कुशल-मंगल जानना भी पंसद नहीं करता। वह मलिन बुद्धि धारण कर्ता यह क्यों
नहीं सोचता कि बुरा वक्त उस पर भी आ सकता है। मानो इस कलयुग में मानवता कहीं
मर सी गई हो। जबकि गांवों में स्थिति विपरीत है।
अत: हम सभी धर्मों के नुमाइंदों से गुजारिश
करना चाहेंगे की वे भारत की अखंडता में एकता की मिशाल को कायम रखते हुए आपस में एक दूसरे के
प्रति नि: स्वार्थ, समर्पण की
भावना व दुख-दर्द के निवारण के लिए काम करें, ताकि विश्व पटल पर कोई व्यक्ति विशेष हमारे राष्ट्र की छवि या प्रतिष्ठा (धर्म
गुरू राष्ट्र) को धूमिल करने की चेष्टा न कर सके।
लेखक की रचना की कुछ
पंक्तियां निम्रवत हैं
मालिक चले, हम मिलजुल, कर सभी।
मानवता धर्म को, कोई झुठला नहीं सकता।।
अडिग रहें सर्वत्र पटल, भूधर मानिंद हम।
हमें कोई मानव धर्म से हिला
नहीं सकता।।
लेखक परिचय:
अंकेश धीमान, पुत्र श्री जय
भगवान
बुढ़ाना जिला मु.नगर उत्तर
प्रदेश
Email Id:-licankdhiman@yahoo.com
licankdhiman@rediffmail.com
Facebook:- A/c-
AnkeshDhiman
बिल्कुल सही, ये मजहब तो हमने बनाये हैं भगवान ने तो हर इन्सान को एक जैसा बनाया हैं, उसने भेदभाव नहीं रखा और हर मजहब में भी एक ही बात अलग अलग भाषा में लिखी हैं, बस इन्सान उस बात को किसी तरह से लेता हैं वो उस इन्सान पर निर्भर हैं.
जवाब देंहटाएंसही लिखा है अंकेश जी आप ने ये मजहब हमें एक सूत्र में बांधता है हमें एक दूसरे से वैर करना कतई नहीं सीखता है
जवाब देंहटाएंSuper
जवाब देंहटाएंमैं तो बस इतना केहना चाहता हूं की ,आजतक हम महात्मा गांधी के तत्वोपर चलते आये हें इसिलिये , मेरा भारत महान हें क्यो की , सभी जाती-धर्म के लोग यहापर रहते हें । और किसी के भी बेहकावे मे ना आकर अगर हम मिलजुलकर एकसाथ रहेंगे तो दुनिया का कोई भी देश हमारी तरफ आँख उठाकर भी नही देख सकता । जयहिंद 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
जवाब देंहटाएंनोटिफिकेशन के रूप मे हिंदी शायरी दीजिए
जवाब देंहटाएंसत्य वचन।
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