self development hindi,self help hindi essay,success and criticism essay in hindi, Success and critics essay in hindi, सफलता की दो सीढ़ियाँ ~ आलोचना और निंदा
वर्तमान युग में प्रत्येक व्यक्ति की लालसा होती
है सफल होना। व्यक्ति सफल होने के लिए अनेक प्रयास करते हैं परंतु कभी-कभी असफलताओं
का सामना भी करना पड़ता है असफलताएं ही व्यक्ति की सबसे बड़ी शिक्षक होती है। उदाहरण
के लिए इतिहास गवाह है-मौहम्मद गौरी पृथ्वी राज चौहान से 17 बार युद्ध लड़ा परंतु हर बार असफलता मिली। 18वीं बार
उसने अपने अथक प्रयासों के बावजूद लक्ष्य को प्राप्त कर लिया ऐसे अनेक उदाहरण इतिहास
में दर्ज है। यदि हमें किसी भी क्षेत्र में सफल होना है तो सबसे पहले हमने लक्ष्य साध कर दृढ़ संकल्प लेना होगा ( माना हमें किसी सौंर्दय
स्थल पर भ्रमण के लिए जाना है हमें ये मालूम नहीं कि किस जगह जाये तो हम लक्ष्य को
प्राप्त नहीं कर सकते, यदि हम दृढ़ संकल्प करें
कि हमने भ्रमण के लिए मंसूरी जाना तब ही तो प्रत्येक सीढ़ी को पार कर अपने लक्ष्य को
प्राप्त कर सकेंगे। )
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हमारे अन्त:हृदय में सर्वत्र दो प्रतिक्रिया चलती रहती जिनको हम धनात्मक और ऋणात्मक
विचार भी कह सकते हैं या साकारात्मक व नकारात्मक मानसिकता भी कह सकते है सकारात्मक
मानसिकता हमेशा जीवन दायनी होती हैं और नकारात्मक सोच हमेशा जीवन संहारक होती है, सकारात्मक
मानसिकता का परिणाम थोड़ा विलम्ब से आता है जबकि नकारात्मक मानसिकता का परिणाम अतिशीघ्र
आ जाता है जो कि जीवन के लिए दुखदायी सिद्ध होता है। हमें अपने ऊपर नकारात्मक मानसिकता
को सवार नहीं होने देना चाहिये क्योंकि जैसी मानसिकता वैसे ही गुण अन्त: हृदय में अंकुरित
हो जाते हैं। हमें सर्वत्र सकारात्मक मानसिकता को ही प्राथमिकता देनी चाहिये क्योंकि
हमारा शरीर उन्हीं तरंगों को ग्रहण करता है जैसे हम विचार रखते हैं।
आप जैसा
विचार करोगे वैसे ही आप हो जाओगे। अगर आप, अपने आप को, निर्बल मानोगे तो, निर्बल बन जाओगे और यदि आपने आप को सामर्थ मानोगे तो सामर्थ बन जाओगे। ~ स्वामी विवेकानंद
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कहने का तात्पर्य यह है कि
हम जैसी मानसिकता रखेंगे हम वैसे ही बन जायेंगे। हमेशा अपने हौंसालों रूपी कमान से
सकारात्मक रूपी तीर के माध्यम से सफलता रूपी लक्ष्य पर हमेशा निशाना बनाये रखना चाहिए
महान सपने देखने वालों के
महान सपने पूरे होते हैं।
~डा. ए.पी.जे अब्दुल कलाम
सफलता के लिए अलोचना व निंदा
शब्द का महत्वपूर्ण स्थान है देखने मेें तो ये शब्द एक समान भावार्थ के लगते अलोचना
को परिभाषित करते हुए किसी महापुरूष ने लिखा है अलोचना शब्द लुच धातु से बना है लुच
का अर्थ होता है देखना इसलिए किसी वस्तु या कृतिकी सम्यक व्याखा, उसका मूल्यांकन आदि करना ही आलोचना है (आसमंतात् लोचनम् अवलोकनम इति आलोचनम) समीक्षा
और समालोचना शब्दों को भी यही अर्थ है अलोचना भी कई प्रकार की हो सकती है जैसे:-
सैद्धान्तिक आलोचना
निर्णयात्मक आलोचना
प्रभावभिव्यंजक आलोचना
व्याखत्मक आलोचना
आलोचना किसी भी क्षेत्र मेंं
हो सकती है जैसे:- कर्म, आप का व्यवहार, लेखन,
समाज सेवा, राजनीति आदि अमुख कार्य करने वाले
व्यक्ति को ही अलोचक कहा जाता है
दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं जो व्यक्ति विशेष के गुण व दोषों का निष्पक्ष व निस्वार्थ भावना से मूल्यांकन कर
व्यक्ति विशेष के समक्ष प्रस्तुत करे वह आलोचना है और इस कार्य करने वाले व्यक्ति को
ही वास्तव में सच्चा आलोचक कहलाता है। एक अच्छे आलोचक में इन गुणों का होना नितांत
आवश्यक है। निष्पक्षता, सहास,
सहानुभूतिपूर्ण, दृष्टिकोण इतिहास और वर्तमान का सम्यक ज्ञान, देशी विदेशी साहित्य और कलाओं का ज्ञान, संवेदन
शीलता,
अध्ययन शीलता, और मनन शीलता।
कुछ मूर्ख व्यक्ति आलोचक
को अपना ही बैरी समझ बैठते है और उस महापुरूष से दीर्घ ईष्र्या करने लगते हैं परंतु
ऐसा नहीं है। हमारे अनुमान से आलोचक की आलोचना हमारे जीवन में अधिक महत्व रखती है वह
तो एक जौहरी की मानिंद है जो व्यक्ति विशेष
को हीरे की तरह तरासना चाहता है उस व्यक्ति को सफलता के अंतिम लक्ष्य बिंदु पर पहुंचाने
में महत्व पूर्ण भूमिका निभाता है। क्योंकि वह हमारे जीवन को अधिक प्रभाव शाली बनाता
है
यदि तुलसी दास जी की पत्नी
उनको आत्मानुभूति न कराती, आज काव्य के क्षेत्र में जो मुकाम
उन्होंने हासिल किया शायद वो न हो पाता।
इसी प्रकार यदि कबीर जी के
गुरू रामानंद जी उनको न धिक्कारते, तो शायद वो भी अपनी सफलता के मुकाम
पर न पहुंच पाते।
दूसरी तरफ यदि हम निंदा की
बात करें तो निंदा भी व्यक्ति की सफलता में अपनी अहम भूमिका अदा करती है। निंदा वह
होती है,
व्यक्ति की बुराइयां अथवा कमियों को तिल का ताड़ बनाना ही निंदा
है। निंदा भी दो प्रकार की होती है एक निंदा तो किसी व्यक्ति विशेष के समक्ष की जाती जो कि उसकी सफलता में सहायक सिद्ध होती
है
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अच्छा मित्र वही होता है
जो आपके समक्ष आप की कमियों को उजागर अथावा बुराइयां प्रस्तुत करें वह ही आपका अच्छा मित्र है।
दूसरी प्रकार की निंदा किसी भी व्यक्ति
की अनुपस्थिति में की जाती है, व्यक्ति की छोटी-छोटी कमियों को
बढ़ा-चढ़ा कर अन्य व्यक्ति या समूह के समक्ष पेश किया जाता है वह ही निंदा है। अमुख
व्यक्ति या समूह के समक्ष जो निंदा कर रहा है वह व्यक्ति निंदक कहलाता है। निंदकों
की हमारे देश में कोई कमी नहीं है। यदि आप अच्छा कार्य कर रहे हंै तो निंदक एक चीटी
की मांनिद समतल धरा में दरार तलाश करने की कौशिश करते है
दहृामाना:
सुतीव्रेण नीचा: परयशोअग्रिना।
अशक्तास्तत्पंद गन्तु ततो निन्दां प्रकुर्वते।।
अर्थात वो नीच प्राणी या निंदक जो किसी की सफलता
से द्वेष भावना रखता है, क्योंकि वह सफलता के मुकाम पर पहुंच नहीं सकता और दूसरों की निंदा
सर्वत्र दुष्ट व्यक्ति ही किया करते हैं व दूसरो के यश को देख कर सदैव ईष्र्या से जलते
हैं।
~ चाणक्य
यदि आप की निंदा की जा रही
हो तो आप ने समझ ले चाहिए कि आप सफलता की ओर अग्रसर है। आपने एक मस्त हाथी की मानिंद
अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए।
अत: हम हमारे देश के प्रत्येक नागरिक से आहृवान
करना चाहेंगे कि ( प्रत्येक व्यक्ति के अन्त: हृदय में कोई न कोई प्रतिभा छिपी है उसे
ज्ञात कर ~ गीता ) अपने देश की उन्नति मेें सहायक होना चाहिए, जिससे हमारे देश में बेरोजगारी की समस्यां का निवारण हो सके। हम जितना समय दूसरों
की निंदा में व्यय करते हैं उतना समय परहित व समाज सेवा में व्यर्थ कर अपने देश को
विकास शील से विकसित करने में सहयोग करना चाहिए।
लेखक की रचना की कुछ पक्तियां
निम्र वत है।
निंदा न हो अन्य की।
नित्य हो राष्ट्र हित।।
राष्ट्र भक्ति परम धर्म हमारा।
हो हम विराट, वृक्ष,
दृढ़।।
वट भांति, प्रसाद विशाल।
शुभ हो नित्य क्षण हिंद का।
सेवा लक्ष्य वतन का।।
हम हैं अंकुर, हिंद के
धरा स्वर्ण, तब जय होगी
लेखक परिचय
अंकेश धीमान, पुत्र: श्री जयभगवान
बुढ़ाना, मुजफ्फरगनर उत्तर प्रदेश
Email Id-licankdhiman@yahoo.com
licankdhiman@rediffmail.com
Facebook A/c-Ankesh Dhiman
बहुत सही लिखा है. सफलता के बीज पहले अपने अंतःकरण में बोने पड़ते हैं.
जवाब देंहटाएंआपकी वेबसाइट बहुत ही लाभकारी है. इसकी पोस्टें हमारा मार्गदर्शन करती हैं.
धन्यवाद.
"हिंदी सक्सेस डॉट कॉम"
WOW, Bhaut Bahiya. Criticism se hi manushy ko apni kamjori ka pata lagta hai aur yah bhi satya hai ki jisne criticism karne wale vyakti ko apna dushman samjh liya wah kabhi safal nahi ho paya. Lekin ek satya aur hai ki koi pahuncha hua vyakti yadi chahta hai ki uska criticism na ho to uske ird gird chapulasi karne walo ki phauj kahdi ho jaati hai. Aur isi ke chalte usko apni kamjoriyo ke baare me pata hi nahi lag pata. Aur aisa vyakti bhi seedhe arsh se phrsh par aa baithta hai.
जवाब देंहटाएंso good article, safalta pane ke liye hame dilo jan se mehant karni padti hain aur us tarah se hame prayas bhi karne padte hain.
जवाब देंहटाएंआज मैं अपने सहकर्मियों से अपनी कमीया / आलोचना सुनकर बहुत दुखी हुआ था लेकिन इस लेख को पढ़ने के बाद मुझे मे नई ऊर्जा का संचार हुआ है आपका ये लेख बहुत अच्छा लगा है। मेरे समझ में नहीं आ रहा है कि आपका शुक्रिया केसे अदा करूँ। वास्तव मे हमारी आलोचना ही हमें आगे बढ़ने का व अपनी कमी को दुर करने का अवसर प्रदान करती हैं ।
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