Top 4 Stories From The Life Of Mahatma Gandhi Part 4 ~ महात्मा गाँधी से जुड़े प्रेरक प्रसंग भाग 4
महात्मा गाँधी से जुड़े प्रेरक(Inspirational Stories From The Life Of Mahatma Gandhi In Hindi) प्रसंगों की श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए ४ अन्य बेहतरीन प्रेरक प्रसंगों को प्रकाशित किया जा रहा है :
कठोरता के साथ किये गए इंकार में भी अपार करुणा होती है!
बात 1926 की है। गांधी जी उन दिनों साबरमती आश्रम में रहा करते थे। दीनबंधु सी.एफ़. एण्ड्रूज़ भी उन दिनों वहीं थे। दीनबन्धु दया के सागर थे, दूसरों का दुख देख वे द्रवित हो जाते थे।
एक दिन मालाबार की ओर से कांग्रेस कमेटी का मंत्री गांधी जी के पास आया। उसने सार्वजनिक कोष का बहुत-सा धन लोकसेवा में ख़र्च किया था। लेकिन हिसाब-किताब में वह कच्चा था। सारा जमा-ख़र्च वह ठीक से पेश न कर पाया। हज़ार रुपये की बात थी। स्थानीय कार्यकारिणी का निर्णय था, “जमा-ख़र्च पेश करो या फिर पैसे भरो।”
उसने कहा, “इतने पैसे कहां से दूं?”
सदस्य ने कहा, “हम क्या बताएं? सार्वजनिक काम का हिसाब-किताब ठीक से रखना चाहिए था।”
उसने कहा, “बापू के पास जाता हूं। वे कह दें, तब तो मानोगे?”
सदस्य ने कहा, “हां मान लेंगे।”
वह मंत्री गांधी जी के पास पहुंचा। उनको उसने सारी बातें बताकर बोला, “बापू! मैं स्कूल की नौकरी छोड़कर सार्वजनिक सेवा के लिए अपने आपको समर्पित कर चुका हूं। मैंने एक भी पैसा अपने काम में नहीं लगाया है।”
गांधी जी ने कहा, “तुम जो कह रहे हो वह सच हो सकता है। लेकिन तुम्हें पैसे भरने चाहिए। सार्वजनिक काम में व्यवस्थितता बहुत ज़रूरी है।”
मंत्री बोला, “मुझसे भूल हो गई। इसका मेरे मन में पश्चाताप है। ग़लती तो हो गई, लेकिन अब क्या हो?”
गांधी जी बोले, “पैसा भरना ही एक मात्र उपाय है।”
वह युवक रोने लगा। पास ही दीनबन्धु खड़े थे। वे दुखी होकर बोले, “बापू! यह आदमी पश्चाताप कर रहा है। आप उससे इतनी कठोरता से क्यों बोलते हैं।”
गांधी जी ने कहा, “पश्चाताप केवल मन में होने से क्या लाभ? दोष का परिमार्जन हो, तो ही कहा जा सकेगा कि वास्तविक पश्चाताप हुआ। यह कुछ नहीं। इस युवक को अपनी भूल सुधारनी चाहिए। जनसेवक है यह।”
गांधी जी प्रेम-सागर थे। लेकिन समय आने पर वे कर्तव्य-निष्ठुर हो जाते थे। कभी-कभी तो कठोरता के साथ किये गए इंकार में ही अपार करुणा होती है।
मुंह से जहर निकालकर किया कैदी का बचाव
उन दिनों गांधी जी जेल में थे। उनसे मिलने ढेरों लोग रोज जेल पहुंच जाते थे, जिससे जेलर परेशान रहता था। आखिरकार उसने एक अफ्रीकी कैदी को गांधी जी की निगरानी का काम दे दिया। वह कैदी गांधी जी पर कड़ी नजर रखने लगा ताकि उनसे कोई मिल न पाए। वह जेलर की आज्ञा का सख्ती और ईमानदारी से पालन कर रहा था। वह कोई भी भारतीय भाषा नहीं समझता था।
जब कभी वह गांधी जी के पास से गुजरता गांधी जी उसे देखकर हल्के से मुस्करा देते। वह कभी मुस्कराता और कभी गांधी जी को घूरते हुए गुजर जाता। लेकिन बापू हमेशा उसे देखकर मुस्कराते थे। एक दिन वह कैदी बैरक की सफाई कर रहा था। बैरक में चारों ओर गंदगी फैली थी। अचानक एक बिच्छू ने उसे डंक मार दिया। कैदी दर्द से तड़प उठा। डंक के कारण उसका शरीर धीरे-धीरे नीला और ठंडा पड़ने लगा। उसकी आंखें भी बंद होने लगीं।
यह देखकर गांधी जी तेजी से दौड़े और उस कैदी के पास गए। उन्होंने पलक झपकते ही उसका हाथ अपने हाथ में लिया और जहां बिच्छू ने डंक मारा था, उसे रगड़ने लगे। फिर उन्होंने मुंह लगाकर उसका जहर निकालने की कोशिश की। यह देखकर कैदियों में अफरातफरी मच गई। जल्दी से डॉक्टर बुलाया गया। तुरंत उसका उपचार किया गया।
जब उस अफ्रीकी कैदी ने आंखें खोलीं तो गांधी जी को अपने पास पाया। गांधी जी उसी चिरपरिचित मुस्कराहट के साथ कैदी को देख रहे थे। कैदी की आंखों से आंसू बह निकले। उसने गांधी जी के चरण स्पर्श कर लिए। उसके बाद वह जीवन भर गांधीजी को अपना आदर्श मानता रहा।
फिर उसने अपने साड़ी के पल्लू में बंधा एक ताम्बे का सिक्का निकाला और गाँधी जी के चरणों में रख दिया। गाँधी जी ने सावधानी से सिक्का उठाया और अपने पास रख लिया। उस समय चरखा संघ का कोष जमनालाल बजाज संभाल रहे थे। उन्होंने गाँधी जे से वो सिक्का माँगा, लेकिन गाँधी जी ने उसे देने से मना कर दिया।
”मैं चरखा संघ के लिए हज़ारों रुपये के चेक संभालता हूँ”, जमनालाल जी हँसते हुए कहा ” फिर भी आप मुझ पर इस सिक्के को लेके यकीन नहीं कर रहे हैं।”
”यह ताम्बे का सिक्का उन हज़ारों से कहीं कीमती है,” गाँधी जी बोले।
कैसे हुआ एक सिक्का हजारों सिक्कों से कीमती
गाँधी जी देश भर में भ्रमण कर चरखा संघ के लिए धन इकठ्ठा कर रहे थ। अपने दौरे के दौरान वे उड़ीसा में किसी सभा को संबोधित करने पहुंचे। उनके भाषण के बाद एक बूढ़ी ग़रीब महिला खड़ी हुई, उसके बाल सफ़ेद हो चुके थे, कपडे फटे हुए थे और वह कमर से झुक कर चल रही थी, किसी तरह वह भीड़ से होते हुए गाँधी जी के पास तक पहुची।
”मुझे गाँधी जी को देखना है” उसने आग्रह किया और उन तक पहुच कर उनके पैर छुए।
फिर उसने अपने साड़ी के पल्लू में बंधा एक ताम्बे का सिक्का निकाला और गाँधी जी के चरणों में रख दिया। गाँधी जी ने सावधानी से सिक्का उठाया और अपने पास रख लिया। उस समय चरखा संघ का कोष जमनालाल बजाज संभाल रहे थे। उन्होंने गाँधी जे से वो सिक्का माँगा, लेकिन गाँधी जी ने उसे देने से मना कर दिया।
”मैं चरखा संघ के लिए हज़ारों रुपये के चेक संभालता हूँ”, जमनालाल जी हँसते हुए कहा ” फिर भी आप मुझ पर इस सिक्के को लेके यकीन नहीं कर रहे हैं।”
”यह ताम्बे का सिक्का उन हज़ारों से कहीं कीमती है,” गाँधी जी बोले।
”यदि किसी के पास लाखों हैं और वो हज़ार-दो हज़ार दे देता है तो उसे कोई फरक नहीं पड़ता। लेकिन ये सिक्का शायद उस औरत की कुल जमा-पूँजी थी। उसने अपना संसार धन दान दे दिया। कितनी उदारता दिखाई उसने… कितना बड़ा बलिदान दिया उसने! इसीलिए इस ताम्बे के सिक्के का मूल्य मेरे लिए एक करोड़ से भी अधिक है।”
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असहयोग आन्दोलन की प्रेरणा
गांधी जी हेनरी डेविड थोरो नामक एक अमेरिकी विचारक से प्रभावित थे। थोरो का मानना था कि संसार में स्वविवेक से बड़ा कोई कानून नहीं है। ईश्वर ने मनुष्य को ये शक्ति दी है कि वो अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकता है, और इसी सोच के आधार पर उन्होंने अमेरिका में एक बार सिटी टैक्स नहीं देने के लिए लेख लिखा। उनका ऐसा लिखना कानून की निगाह में ज़ुर्म था, लिहाजा उन्होंने अपना ज़ुर्म कबूल करते हुए सजा भी पाई। सजा अपनी जगह थी, लेकिन उनका कहना था कि कोई भी कानून स्वविवेक से बढ़ कर नहीं हो सकता।
थोरो का यही सिद्धांत गांधी जी के लिए सत्याग्रह का विज्ञान बना। गांधी जी ने समझ लिया कि किसी कानून की अवज्ञा नैतिक आधार पर की जा सकती है। हेनरी थोरो ने कहा था:
" लोकतंत्र पर मेरी आस्था है, पर वोटों से चुने गये व्यक्ति स्वेच्छाचार करें मैं यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता | राजसंचालन उन व्यक्तियों के हाथ में होना चाहिए जिनमे मनुष्य मात्र के कल्याण की भावना और कर्तव्य-परायणता विद्दमान हो और जो उसकी पूर्ति के लिए त्याग भी कर सकते हों । "
किसी ने कहा-यदि ऐसा न हुआ तो ?'
उन्होंने कहा- " तो हम ऐसी राज्य सत्ता के साथ कभी सहयोग नहीं करेंगे चाहे उसमे हमें कितना ही कष्ट क्योँ न उठाना पड़े । "
वे सविनय-असहयोग आंदोलन के प्रवर्तक थे, उनका कहना था- 'अन्याय चाहे अपनें घर में होता हो या बाहर, उसका विरोध करने से नहीं डरना चाहिए और कुछ न कर सको तो भी बुराई के साथ सहयोग तो करना ही नहीं चाहिए ।
बुराइयाँ चाहे राजनैतिक हों या सामाजिक, नैतिक हों या धार्मिक, जिस देश के नागरिक उनके विरुद्ध खड़े हो जाते हैं, सविनय असहयोग से उसकी शक्ति कमजोर कर देतें हैं वहां अमेरिका की तरह ही सामाजिक जीवन में परिवर्तन भी अवश्य होते हैं ।
महात्मा गांधी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन की प्रेरणा हेनरी डेविड थोरो से प्राप्त हुई । उनकी प्रार्थना को गांधी जी ' प्रार्थनाओं की प्रार्थना ' कहते थे । उनकी प्रार्थना थी:
" हे प्रभो ! मुझे इतनी शक्ति दे दो कि मैं अपने को अपनी करनी से कभी निराश न करूँ । मेरे हस्त, मेरी द्रढ़ता, श्रद्धा का कभी अनादर न करें । मेरा प्रेम मेरे मित्रों के प्रेम से घटिया न रहे । मेरी वाणी जितना कहे-- जीवन उससे ज्यादा करता चले । तेरी मंगलमय स्रष्टि का हर अमंगल पचा सकूँ, इतनी शक्ति मुझ में बनी रहे । "
महात्मा गाँधी से जुड़े अन्य प्रेरक प्रसंग भी पढ़ें(Best Stories From The Life Of Mahatma Gandhi) :
Nice post sir, kafi achhi kahani hai. thanks for sharing with us.
जवाब देंहटाएंNice post sir, kafi achhi kahani hai. thanks for sharing with us.
जवाब देंहटाएंgreat stories of gandhiji.
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