Top 4 Prerak Prasang From The Life Of Gandhi Ji ~ महात्मा गाँधी से जुड़े सर्वश्रेष्ठ 4 प्रेरक प्रसंग ~ भाग 2,Inspirational Incidents from Mahatma Gandhi's Life in Hindi,महात्मा गांधी जी की कहानी, Mahatma Gandhi short Story in hindi
गांधीजी के एक अनुयायी थे आनंद स्वामी, जो सदा उनके साथ ही रहा करते थे | एक दिन किसी बात को लेकर उनकी एक व्यक्ति से तू-तू, में-में हो गई |
वह व्यक्ति कुछ दीन-हीन था | आनंद स्वामी को जब अधिक क्रोध आया तो उन्होंने उसको एक थप्पड़ मार दिया |
गांधीजी को आनंद स्वामी की यह हरकत बुरी लगी | वह बोले, ‘यह एक सामान्य-सा व्यक्ति है, इसलिए तुमने इसे थप्पड़ रसीद कर दिया | यदि यह बराबर की टक्कर का होता तो क्या तुम्हारी ऐसी हिम्मत होती ? चलो, अब तुम इससे माफ़ी मांगो |’
जब आनंद स्वामी उस व्यक्ति से माफ़ी माँगने को राजी न हुए तब गांधीजी ने कहा, ‘यदि तुम अन्याय-मार्ग पर चलोगे तो तुम्हे मेरे साथ रहने का कोई हक़ नहीं है |’
अंतत: आनंद स्वामी को उस व्यक्ति से माफ़ी मांगनी ही पड़ी |
प्रसंग प्रसंग 2 ~ गांधीजी का मंदिर
एक बार गांधीजी को एक पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि शहर में गांधी मंदिर की स्थापना की गई है, जिसमें रोज उनकी मूर्ति की पूजा-अर्चना की जाती है। यह जानकर गांधीजी परेशान हो उठे। उन्होंने लोगों को बुलाया और अपनी मूर्ति की पूजा करने के लिए उनकी निंदा की। इस पर उनका एक समर्थक बोला,
'बापूजी, यदि कोई व्यक्ति अच्छे कार्य करे तो उसकी पूजा करने में कोई बुराई नहीं है।'
उस व्यक्ति की बात सुनकर गांधीजी बोले,
'भैया, तुम कैसी बातें कर रहे हो? जीवित व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करना बेढंगा कार्य है।'
इस पर वहां मौजूद लोगों ने कहा, 'बापूजी हम आपके कार्यों से बहुत प्रभावित हैं। इसलिए यदि आपको यह सम्मान दिया जा रहा है तो इसमें ग़लत क्या है।'
गांधीजी ने पूछा, 'आप मेरे किस कार्य से प्रभावित हैं?'
यह सुनकर सामने खड़ा एक युवक बोला, 'बापू, आप हर कार्य पहले स्वयं करते हैं, हर जिम्मेदारी को अपने ऊपर लेते हैं और अहिंसक नीति से शत्रु को भी प्रभावित कर देते हैं। आपके इन्हीं सद्गुणों से हम बहुत प्रभावित हैं।'
गांधीजी ने कहा, 'यदि आप मेरे कार्यों और सद्गुणों से प्रभावित हैं तो उन सद्गुणों को आप लोग भी अपने जीवन में अपनाइए। तोते की तरह गीता-रामायण का पाठ करने के बदले उनमें वर्णित शिक्षाओं का अनुकरण ही सच्ची पूजा-उपासना है।'
इसके बाद उन्होंने मंदिर की स्थापना करने वाले लोगों को संदेश भिजवाते हुए लिखा कि आपने मेरा मंदिर बनाकर अपने धन का दुरुपयोग किया है। इस धन को आवश्यक कार्य के लिए प्रयोग किया जा सकता था। इस तरह उन्होंने अपनी पूजा रुकवाई।
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प्रसंग प्रसंग 3 ~ कोई जिम्मेदारी लें तो उसे अवश्य समय पर पूरा करें
एक बार गांधीजी सूत कातने के बाद उसे लपेटने ही वाले थे कि उन्हें एक आवश्यक कार्य के लिए तुरंत बुलाया गया। गांधीजी वहां से जाते समय आश्रम के साथी श्री सुबैया से बोले,
'मैं पता नहीं कब लौटूं, तुम सूत लपेटे पर उतार लेना, तार गिन लेना और प्रार्थना के समय से पहले मुझे बता देना।'
सुबैया बोला, 'जी बापू, मैं कर लूंगा।' इसके बाद गांधी जी चले गए।
मध्य प्रार्थना के समय आश्रमवासियों की हाजिरी होती थी। उस समय किस व्यक्ति ने कितने सूत के तार काते हैं, यह पूछा जाता था। उस सूची में सबसे पहला नाम गांधीजी का था। जब उनसे उनके सूत के तारों की संख्या पूछी गई तो वह चुप हो गए। उन्होंने सुबैया की ओर देखा। सुबैया ने सिर झुका लिया। हाजिरी समाप्त हो गई। प्रार्थना समाप्त होने के बाद गांधीजी कुछ देर के लिए आश्रमवासियों से बातें किया करते थे। उस दिन वह काफ़ी गंभीर थे। उन्हें देखकर लग रहा था जैसे कि उनके भीतर कोई गहरी वेदना है।
उन्होंने दुख भरे स्वर में कहना शुरू किया,
'मैंने आज भाई सुबैया से कहा था कि मेरा सूत उतार लेना और मुझे तारों की संख्या बता देना। मैं मोह में फंस गया। सोचा था, सुबैया मेरा काम कर लेंगे, लेकिन यह मेरी भूल थी। मुझे अपना काम स्वयं करना चाहिए था। मैं सूत कात चुका था, तभी एक जरूरी काम के लिए मुझे बुलावा आ गया और मैं सुबैया से सूत उतारने को कहकर बाहर चला गया। जो काम मुझे पहले करना था, वह नहीं किया। भाई सुबैया का इसमें कोई दोष नहीं, दोष मेरा है। मैंने क्यों अपना काम उनके भरोसे छोड़ा? इस भूल से मैंने एक बहुत बड़ा पाठ सीखा है। अब मैं फिर ऐसी भूल कभी नहीं करूंगा।'
उनकी बात सुनकर सुबैया को भी स्वयं पर अत्यंत ग्लानि हुई और उन्होंने निश्चय किया कि यदि आगे से वह कोई जिम्मेदारी लेंगे तो उसे अवश्य समय पर पूरा करेंगे।
प्रसंग प्रसंग 4 ~ राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति सत्याग्रह
गांधी जी ने भारत के स्वतंत्रता के लिये सिर्फ जन जागरण अभियान ही नहीं चलाया अपितु राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी को स्थापित करने में भी अग्रणी भूमिका निभायी थी। भारत आने के बाद 1917 में जब उन्होंने अपनी पहली सत्याग्रह यात्रा चम्पारण से आरंभ की तो इसी दौरान 3 जून को उन्होंने ऐक परिपत्र निकाला था जिसमें हिन्दी की महत्ता के संदर्भ में लिखा था ।
हिन्दी जल्दी से जल्दी अंग्रेजी का स्थान लेले, यह ईश्वरी संकेत जान पडता है। हिन्दी शिक्षित वर्गों के बीच समान माध्यम ही नहीं बल्कि जनसाधारण के हृदय तक पहुंचने का द्वार बन सकती है । इस दिशा में कोई देसी भाषा इसकी समानता नहीं कर सकती । अंगेजी तो कदापि नहीं कर सकती।
गांधी जी हिन्दी का मौखिक प्रचार करके ही, राष्ट्रभाषा के रूप में उसकी महत्ता और प्रतिष्ठा बताकर ही चुप नहीं रहे उन्होंने 1918 के ठेठ अंगेजी वर्चस्व के दौरान दक्षिण भारत में हिन्दी का प्रचार करने की व्यवस्था भी की।
इसी वर्ष इन्दौर में गांधी जी की अध्यक्षता में हिन्दी साहित्य सम्मेलन आयोजित हुआ और उसी में पारित एक प्रस्ताव के द्वारा हिन्दी राजभाषा मानी गयी। इस प्रस्ताव के स्वीकृत होने के बाद दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिये दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की भी स्थापना हुयी जिसका मुख्यालय मद्रास में था।
महात्मा गांधी जी के इस अभिनव प्रयास के उपरांत ही हिन्दी क्षेत्रीयता के कंटीले तारों की बाढ को पार कर उन्मुक्त आकाश में विचरण करने के लिये पंख फडफडाती दिखी जो आज तक जारी है।
महात्मा गाँधी से जुड़े अन्य प्रेरक प्रसंग भी पढ़ें(Best Stories From The Life Of Mahatma Gandhi) :
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mahatma gandhi is great person
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महात्मा गांधी के बारे में उनकी जिंदगी से जुडी हुई कुछ सच्ची घटनाए बताने के लिए. हमारे देश के महापुरुषों द्वारा आम जिंदगियो में किये गए अच्छे कार्य ही हम आम लोगो के लिए प्रेरणा के स्रोत बनकर उभरते हैं. धन्यवाद. :)
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